महादेवी वर्मा – एक छायावादी कवयित्री

भूमिका महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा थीं, जिन्होंने छायावादी युग को अपनी रचनाओं से नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। उनकी कविताओं में नारी संवेदना, प्रेम, प्रकृति, आध्यात्मिकता और वेदना का गहन मिश्रण मिलता है। उन्हें “आधुनिक मीरा” कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ आत्मिक प्रेम और वैराग्य से ओत-प्रोत हैं। 2 6 मार्च को उनके जन्मदिवस के अवसर पर यह लेख उनके साहित्यिक योगदान, विचारधारा और उनके अमर काव्य की गहराइयों को समझने का एक प्रयास है। 1. महादेवी वर्मा – एक छायावादी कवयित्री छायावाद का परिचय छायावाद हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन है, जो मुख्य रूप से 1918 से 1936 तक विकसित हुआ। यह आधुनिक हिंदी काव्य का स्वर्ण युग माना जाता है। छायावाद की कविता में व्यक्तिवाद, रहस्यवाद, प्रकृति-प्रेम, स्वच्छंदता, कल्पनात्मकता और कोमल भावनाओं की प्रधानता होती है। यह काव्यधारा मुख्य रूप से अहं ( self) और आत्मा की गहन अनुभूतियों को व्यक्त करती है। परिभाषा: " छायावाद हिंदी कविता में वह प्रवृत्ति है जिसमे...