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महादेवी वर्मा – एक छायावादी कवयित्री

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  भूमिका महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक ऐसी विलक्षण प्रतिभा थीं, जिन्होंने छायावादी युग को अपनी रचनाओं से नई ऊँचाइयाँ प्रदान कीं। उनकी कविताओं में नारी संवेदना, प्रेम, प्रकृति, आध्यात्मिकता और वेदना का गहन मिश्रण मिलता है। उन्हें “आधुनिक मीरा” कहा जाता है, क्योंकि उनकी रचनाएँ आत्मिक प्रेम और वैराग्य से ओत-प्रोत हैं। 2 6 मार्च को उनके जन्मदिवस के अवसर पर यह लेख उनके साहित्यिक योगदान, विचारधारा और उनके अमर काव्य की गहराइयों को समझने का एक प्रयास है। 1. महादेवी वर्मा – एक छायावादी कवयित्री  छायावाद का परिचय छायावाद  हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण काव्य आंदोलन है, जो मुख्य रूप से  1918 से 1936  तक विकसित हुआ। यह  आधुनिक हिंदी काव्य का स्वर्ण युग  माना जाता है। छायावाद की कविता में  व्यक्तिवाद, रहस्यवाद, प्रकृति-प्रेम, स्वच्छंदता, कल्पनात्मकता और कोमल भावनाओं  की प्रधानता होती है। यह काव्यधारा मुख्य रूप से  अहं ( self) और आत्मा की गहन अनुभूतियों  को व्यक्त करती है। परिभाषा: " छायावाद हिंदी कविता में वह प्रवृत्ति है जिसमे...

गाँवों से युवाओं का पलायन: एक गंभीर समस्या और उसके समाधान

ग ाँवों से युवाओं का पलायन: एक गंभीर समस्या और उसके समाधान परिचय भारत जैसे कृषि प्रधान देश में गाँवों का महत्व अत्यधिक है। गाँव न केवल कृषि उत्पादन के केंद्र होते हैं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक धरोहर के भी प्रतीक होते हैं। परंतु हाल के दशकों में गाँवों से युवाओं का पलायन तेजी से बढ़ा है, जिससे गाँवों की पारंपरिक संरचना प्रभावित हो रही है। इस लेख में, हम गाँवों से हो रहे पलायन, बुजुर्गों में अकेलापन, जमीन और घर बेचने की प्रवृत्ति, रोजगार की खोज में शहरों की ओर बढ़ते युवाओं, तथा इस स्थिति से निपटने में नई पीढ़ी की भूमिका पर विस्तृत चर्चा करेंगे।   गाँवों से युवाओं का पलायन आजकल गाँवों के युवा रोजगार, शिक्षा, और बेहतर जीवनशैली की तलाश में बड़े शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं। यह प्रवृत्ति गाँवों को खाली कर रही है और वहाँ की पारंपरिक जीवनशैली को प्रभावित कर रही है। इस समस्या के कई कारण हैं, जिनमें प्रमुख हैं: रोजगार की कमी – गाँवों में अच्छी नौकरियों और व्यापारिक अवसरों की कमी के कारण युवा रोजगार के लिए शहरों की ओर बढ़ रहे हैं। शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की ...